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भारत में ऑनलाइन इस्लामी उग्रवाद के विरुद्ध प्रौद्योगिकी और समुदाय 

 
ऑनलाइन इस्लामी उग्रवाद का बढ़ना भारत की सामाजिक एकता और आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है। जैसे-जैसे डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ रही है और सोशल मीडिया संचार का प्रमुख माध्यम बन गया है, चरमपंथी समूह इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग प्रचार फैलाने, सदस्यों की भर्ती करने और विभाजन को भड़काने के लिए कर रहे हैं। यह समस्या जटिल है; यह तकनीक, मनोविज्ञान और सामाजिक-राजनीतिक शिकायतों के संगम पर कार्य करती है। इसे प्रभावी ढंग से रोकने के लिए तकनीकी शासन, नवाचार, सामुदायिक भागीदारी और सक्रिय प्रशासन का संयुक्त दृष्टिकोण आवश्यक है।

  चरमपंथी भर्ती कर्ताओं ने डिजिटल प्रभाव (digital persuasion) की कला में महारत हासिल कर ली है  

आज के समय में उग्रवाद के लिए शारीरिक संपर्क या गुप्त बैठकों की आवश्यकता नहीं होती। इसके बजाय, चरमपंथी भर्ती कर्ताओं ने डिजिटल प्रभाव (digital persuasion) की कला में महारत हासिल कर ली है। वे सोशल मीडिया एल्गोरिदम. ट्रेंडिंग हैशटैग, एन्क्रिप्टेड चैट प्लेटफॉर्म और यहां तक कि शॉर्ट वीडियो का उपयोग करते हैं ताकि भावनाओं को प्रभावित किया जा सके और पीड़ित अवस्था, अन्याय और पहचान संघर्ष की कहानी आगे बढ़ाई जा सकें। ये नेटवर्क अक्सर धार्मिक या मानवीय आवरण के पीछे छिप जाते हैं और संवेदनशील छवियों, धार्मिक व्याख्याओं और झूठी खबरों का उपयोग कर युवाओं को आकर्षित करते हैं। यूट्यूब प्रवचन, टेलीग्राम समूह, एक्स (पूर्व में ट्विटर) स्पेस और यहां तक कि गेमिंग चैट रूम भी वैचारिक ब्रेनवाशिंग के शक्तिशाली साधन बन चुके हैं।

प्रति उग्रवाद (counter-radicalization) के साधन के रूप में इंटरनेट 

800 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं, युवा आबादी और भाषाई विविधता वाले भारत को विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भर्तीकर्ता स्थानीय भाषाओं में क्षेत्र-विशिष्ट संदेश बनाते हैं ताकि संवेदनशील व्यक्तियों को निशाना बनाया जा सके, विशेषकर वे जो सामाजिक-आर्थिक तनाव या अलगाव की भावना से गुजर रहे हों। हालांकि सोशल मीडिया ने  उग्रवादी संदेशों को बढ़ावा दिया है. लेकिन यदि इसका जिम्मेदारीपूर्वक उपयोग किया जाए तो यह प्रति उग्रवाद (counter-radicalization) के साधन के रूप में भी काम कर सकता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स जैसे प्लेटफॉर्म के पास डेटा, पहुंच और एल्गोरिद्म हैं जिनकी मदद से चरमपंथी सामग्री को फैलने से पहले पहचाना जा सकता है। मुख्य बात यह है कि इन तकनीकों का उपयोग नैतिक रूप से और सरकार तथा नागरिक समाज के सहयोग से किया जाए।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) उग्रवाद की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) उग्रवाद की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। AI केवल निगरानी का साधन नहीं बल्कि एक रोकथाम का उपकरण भी है। प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स ऑनलाइन व्यवहार में होने वाले उन बदलावों की पहचान कर सकती है जो उग्रवाद की ओर झुकाव दर्शाते हैं, जैसे कि चरमपंथी पेजों के साथ बार-बार संपर्क या पोस्टिंग पैटर्न में अचानक बदलाव। इस तरह की जानकारी शुरुआती हस्तक्षेप के लिए उपयोगी हो सकती है, जहां दंडात्मक कार्यवाही के बजाय काउंसलिंग या डिजिटल पहुंच के माध्यम से मदद की जा सकती है। AI चैटबॉट या वर्चुअल काउंसलर गुमनाम रूप से उपयोगकर्ताओं से संवाद कर सकते हैं, उनकी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं और उन्हें प्रमाणिक धार्मिक विद्वानों या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की ओर मार्गदर्शन कर सकते हैं। यह मॉडल मध्य पूर्व और यूरोप के कुछ देशों में सफल भी रहा है।

तकनीकी मानव तत्व की जगह नहीं ले सकता

हालांकि तकनीकी उग्रवाद का पता लगा सकती है और उसे बाधित कर सकती है, लेकिन मानव तत्व की जगह नहीं ली जा सकती। उग्रवाद अक्सर उन शिकायतों से शुरू होता है जैसे बेरोजगारी, भेदभाव, सामाजिक अलगाव या धर्म की गलत व्याख्या। समुदाय-आधारित शिकायत निवारण प्रणाली इन समस्याओं को शुरुआती स्तर पर ही रोकने का कार्य करती है। “कम्युनिटी-ड्रिवन डिजिटल वीस सेल्स” बनाना, जिसमें स्थानीय मौलवी, शिक्षक, युवा नेता और मनोवैज्ञानिक शामिल हों, ऐसे सुरक्षित स्थान तैयार कर सकता है जहां लोग अपनी समस्या रख सकें। जब व्यक्ति शिकायतें व्यक्त करते हैं, तो ये सेल्स मार्गदर्शन, काउंसलिंग और सामाजिक सहयोग प्रदान करते हैं, जिससे वह भावनात्मक खालीपन भर सके जिसका उग्रवादी फायदा उठाते हैं।

स्थानीय स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कर यह सिखाया जा सकता है कि ऑनलाइन उग्रवाद के शुरुआती संकेत

समुदाय के सदस्य अक्सर युवाओं के व्यवहार में बदलाव को सबसे पहले नोटिस करते हैं। स्थानीय स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित कर यह सिखाया जा सकता है कि ऑनलाइन उग्रवाद के शुरुआती संकेत जैसे समूह से दूरी बनाना, गोपनीयता बढ़ाना, या चरमपंथी सामग्री के प्रति अत्यधिक रुचि कैसे पहचाने जाएं। विश्वसनीय इस्लामी विद्वानों के साथ मिलकर युवाओं को इस्लाम की सही शिक्षाओं -शांति, करुणा और सहिष्णुता के बारे में बताया जा सकता है ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके। मस्जिदों और मदरसों में डिजिटल जागरूकता कार्यक्रम शामिल किए जा सकते हैं ताकि छात्र ऑनलाइन सामग्री का जिम्मेदारीपूर्वक उपयोग करना सीख सकें। एक विकेंद्रीकृत रिपोर्टिंग और काउंसलिंग प्रणाली, जिसमें समुदाय बिना डर के अधिकारियों को जानकारी दे सके, पारदर्शिता और विश्वास सुनिश्चित करती है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को एनजीओ के साथ मिलकर पहले बार के अपराधियों के पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए।

“साइबरस्पेस में सामाजिक सुरक्षा” को शामिल करना होगा

भारत में साइबर सुरक्षा ढांचे को केवल डेटा संरक्षण से आगे बढ़ते हुए “साइबरस्पेस में सामाजिक सुरक्षा” को शामिल करना होगा। इसका अर्थ है खुफिया एजेंसियों, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बीच राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय को मजबूत करना। चरमपंथी प्रचार का पता लगाने और ऑनलाइन भर्ती नेटवर्क को खत्म करने के लिए एक विशेष साइबर सेल की आवश्यकता है। सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम, 2021) जैसे विधिक उपायों को अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि प्लेटफ़ॉर्म की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी बनी रहे। पारदर्शिता रिपोर्ट, स्वतंत्र ऑडिट और एल्गोरिद्म की जवाबदेही सुरक्षा और लोकतंत्र के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

ऑनलाइन इस्लामी उग्रवाद का बढ़ना केवल कानून और व्यवस्था का मुद्दा नहीं है; यह एक सामाजिक-तकनीकी चुनौती है

भारत में ऑनलाइन इस्लामी उग्रवाद का बढ़ना केवल कानून और व्यवस्था का मुद्दा नहीं है; यह एक सामाजिक-तकनीकी चुनौती है जो सहानुभूति, नवाचार और सहयोग की मांग करती है। यदि नैतिकता के साथ मार्गदर्शन किया जाए तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता शुरुआती चेतावनी प्रणाली बन सकती है, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विभाजन के बजाय शांति को बढ़ावा देने के साधन बन सकते हैं। फिर भी, उग्रवाद  के प्रतिरोध का मूल समुदायों के भीतर ही निहित है युवाओं को सशक्त बनाना, शिकायतों का समाधान करना और इस्लाम की समावेशी भावना को दोहराना, जो हिंसा को अस्वीकार करती है और मानवता को सर्वोपरि मानती है। एक संयुक्त दृष्टिकोण साइबरस्पेस को उग्रवाद के अड्डे से संवाद, सीखने और सह-अस्तित्व के मंच में बदल सकता है, जिससे भारत का डिजिटल भविष्य सुरक्षित, बहुलतावादी और शांतिपूर्ण बन सके।

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