रांची: पार्थेनियम जागरूकता सप्ताह के अवसर पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा मनुष्य, पशु-पक्षी एवं पर्यावरण के लिए हानिकारक इस खरपतवार के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया गया।
वैज्ञानिक डॉ शीला बारला ने बताया कि आईसीएआर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के निर्देश पर विद्यार्थियों, कर्मचारियों एवं शिक्षकों के बीच पार्थेनियम के दुष्प्रभावों और प्रबंधन के उपायों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया।
उन्होंने बताया कि इस खरपतवार से मनुष्यों एवं पशुओं को त्वचा रोग (डरमेटाइटिस), अस्थमा ब्रोंकाइटिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं, इसलिए इसके नियंत्रण के लिए जन भागीदारी आवश्यक है। प्रबंधन के लिए इसका फूल आने से पहले ही पौधे को उखाड़ कर कंपोस्ट बना देना चाहिए। इसे विस्थापित करने के लिए चकोड़़, गेंदा जैसे प्रतिस्पर्धी पौधों के बीजों का रोपण करना चाहिए। अकृषित क्षेत्रों में वैज्ञानिक परामर्श के अनुरूप ग्लाइफोसेट या 2, 4 डी शाकनाशी का छिड़काव करना चाहिए। इसे उखाड़ने के लिए हाथ में दस्ताना या प्लास्टिक कवर का प्रयोग करना चाहिए।
पार्थेनियम को गाजर घास या चटक चांदनी के नाम से भी जाना जाता है जो पूरे भारत में लगभग 350 लाख हेक्टेयर भूमि में अपने पांव पसार चुका है। इसके फूलों में बीज की संख्या इतनी अधिक होती है कि एक पौधा 25 से 50 हजार तक पौधे तैयार कर सकता है। इसका कोई प्राकृतिक शत्रु नहीं होने के कारण यह फैलता ही जा रहा है।