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“विकसित भारत 2047 की ओर भारत की यात्रा: एक टिकाऊ और लचीले भविष्य के लिए सामाजिक समानता, आर्थिक विकास और वैश्विक अंतर्निर्भरता के बीच तालमेल की खोज” विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का भव्य समापन केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड (CUJ) के ऑडिटोरियम में हुआ।

सम्मेलन की शुरुआत “भारत की औद्योगिक प्रगति: वैश्विक पारस्परिकता, तकनीकी व्यवधान और सतत विकास के बीच संतुलन” विषय पर पैनल चर्चा से हुई। इस सत्र का संचालन डॉ. नितेश भाटिया, डीबीए, सीयूजे ने किया, जिसमें प्रो. अजय सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय), श्री इंद्रजीत यादव (निदेशक, एमएसएमई, रांची), श्री संजीव कुमार (सेवानिवृत्त कार्यकारी निदेशक, मेकॉन, रांची), और प्रो. भगवान सिंह (डीबीए, सीयूजे) ने भाग लिया। पैनल में तकनीकी प्रगति और औद्योगिक विस्तार को सतत विकास के साथ संतुलित करने की आवश्यकता पर चर्चा हुई।

इसके बाद सम्मेलन के दौरान तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें मानव पूंजी विकास, शासन और नीति रूपरेखा, तथा वैश्विक अंतर्निर्भरता जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई। शोधकर्ताओं ने उद्यमिता, वित्तीय समावेशन, सतत वित्त, वैश्विक व्यापार नीति और वित्तीय संकटों के दौरान आर्थिक लचीलापन जैसे विषयों पर अपने शोध प्रस्तुत किए। विद्वानों ने उन नई नीतिगत रणनीतियों और आर्थिक मॉडलों पर विचार किया जो भारत को अधिक सतत और समृद्ध भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।

समापन सत्र का शुभारंभ दोपहर 1:00 बजे डॉ. बटेश्वर सिंह, संयोजक द्वारा स्वागत संबोधन से हुआ। इसके बाद, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति, प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल ने समापन भाषण दिया। उन्होंने विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उद्यमशील मानसिकता (Entrepreneurial Mindset) को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “एक छात्र को लें, उसे तैयार करें, और वह हमें विकसित भारत की ओर ले जाएगा।” उन्होंने संकल्प और क्रियान्वयन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “संकल्प लीजिए और काम करिए, तो विकसित भारत 2047 अवश्य मिलेगा।”

प्रो. चक्रवाल ने नौकरी चाहने वालों की बजाय अधिक उद्यमियों और अर्थशास्त्रियों को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि समस्याओं की पहचान कर उनके व्यावहारिक समाधान निकालने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि “जो उपदेश दिया जाए, उसे व्यवहार में भी लाना चाहिए।”

प्रो. अजय कुमार सिंह, अधिष्ठाता और प्रमुख, वाणिज्य और व्यवसाय संकाय, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने संबोधन में कहा कि भारत हमेशा से अवसरों की भूमि रहा है। उन्होंने कहा, “विकसित भारत हमारे लिए कोई नया विचार नहीं है। भारत पहले भी विकसित था जब व्यापारी यहां व्यापार करने के लिए आते थे।” उन्होंने महाकुंभ मेले का उदाहरण देते हुए इसे प्रबंधन के एक उत्कृष्ट केस स्टडी के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे भारत की संगठनात्मक दक्षता का परिचय मिलता है।

उन्होंने फ्रुगल इनोवेशन (कम लागत में नवाचार) पर जोर देते हुए मिट्टीकूल (बिजली के बिना चलने वाला मिट्टी का रेफ्रिजरेटर) और जल एवं सड़क पर चलने वाली साइकिल जैसे नवाचारों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “ऐसे नवाचार सतत विकास को दर्शाते हैं और इन्हें आर्थिक प्रगति के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।”

प्रो. रवि नारायण कर ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) पर चर्चा की और छात्रों में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली में वैश्विक दृष्टिकोण को शामिल करना आवश्यक है, लेकिन साथ ही भारतीय शैक्षिक परंपराओं का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड के कुलपति, प्रो. क्षिति भूषण दास ने अपने अध्यक्षीय भाषण में उद्यमशीलता और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता को दोहराया। उन्होंने कहा, “आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना ही किसी राष्ट्र को विकसित बनाने की कुंजी है।” उन्होंने आगे कहा, “यदि हमें स्वतंत्र बनना है, तो हमें पहले आंतरिक रूप से आत्मनिर्भर बनना होगा।”

प्रो. दास ने “ऑर्गेनिक थिंकिंग” को नीति-निर्माण और आर्थिक सुधारों में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने शिक्षा को राष्ट्रीय विकास का सबसे महत्वपूर्ण आधार बताया और कहा, “यदि किसी देश को नष्ट करना हो, तो उसकी शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दो।” उन्होंने कहा कि “विकसित भारत का अर्थ विकसित केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड भी होना चाहिए।”

यह दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन एक महत्वपूर्ण बौद्धिक संगोष्ठी साबित हुआ, जिसमें आर्थिक नीति, उद्यमिता, सतत विकास, और शासन जैसे विषयों पर गहन चर्चा हुई। विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत नवाचारपूर्ण विचारों और ठोस समाधान ने इस आयोजन को और अधिक प्रभावशाली बनाया।

समापन पर सभी विशेषज्ञों और प्रतिभागियों ने इस विचार को स्वीकार किया कि विकसित भारत 2047 केवल एक सपना नहीं है, बल्कि यह एक सामूहिक मिशन है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कार्य करने की भावना, नवाचार, और एक मजबूत शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता होगी। केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने इस सम्मेलन के माध्यम से यह संदेश दिया कि शिक्षा और शोध के माध्यम से ही सतत विकास की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

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