NEWS7AIR

डॉ. अभय कृष्ण सिंह को आईसीएसएसआर की 30 लाख की मेजर रिसर्च परियोजना

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि

रांची: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, भूगोल विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अभय कृष्ण सिंह को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), नई दिल्ली से “नील-हरित अवसंरचना (Blue-Green Infrastructure) के ह्रास एवं इसके जलवायुवीय-जलचक्रीय गतिकी (Hydroclimatic Dynamics) और आजीविका पर प्रभाव” विषय पर 30 लाख रुपये की मेजर रिसर्च परियोजना स्वीकृत हुई है। यह विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार है कि किसी शोधकर्ता को आईसीएसएसआर से मेजर रिसर्च परियोजना प्राप्त हुई है, जिससे यह संपूर्ण विश्वविद्यालय समुदाय के लिए गर्व का विषय बन गया है।

यह परियोजना रांची और उसके शहरी क्षेत्र में 1974 से 2024 के बीच नील-हरित अवसंरचना (BGI) में आए परिवर्तनों का भू-स्थानिक तकनीकों (Geospatial Techniques) और रिमोट सेंसिंग की सहायता से विश्लेषण करेगी। नील-हरित अवसंरचना में झीलें, नदियाँ, आर्द्रभूमियाँ, वन और शहरी हरित क्षेत्र शामिल हैं, जो जलवायु संतुलन, जल संरक्षण और स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं। रांची शहर ने हाल के दशकों में भूजल स्तर की गिरावट, गर्मियों में पीने योग्य पानी की किल्लत, शहरी ऊष्मा द्वीप (Urban Heat Island) प्रभाव, अचानक आने वाली बाढ़ (Flash Flood) जैसी जलवायुवीय-जलचक्रीय समस्याओं का सामना किया है। यह परियोजना इन सभी समस्याओं के वैज्ञानिक समाधान विकसित करने की दिशा में कार्य करेगी।

डॉ. अभय कृष्ण सिंह एक अनुकरणीय शिक्षक, अत्यंत प्रतिबद्ध शोधकर्ता एवं भू-स्थानिक तकनीकों के विशेषज्ञ हैं। वे विश्वविद्यालय के रिमोट सेंसिंग एवं जीआईएस विभाग के प्रमुख भी हैं। भूगोल के क्षेत्र में उनका शोध न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है। यह उनकी चौथी मेजर रिसर्च परियोजना है, और वे अब तक कई पीएच.डी. शोधार्थियों का सफल मार्गदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने दो पुस्तकें लिखी हैं और उनके 30 से अधिक शोध-पत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं।

डॉ. सिंह हाइड्रोक्लाइमेटिक (जलवायुवीय-जलचक्रीय) समस्याओं के समाधान के लिए “स्पंज सिटी” (Sponge City) अवधारणा के प्रबल समर्थक हैं। उनकी यह परियोजना रांची शहर में स्पंज सिटी मॉडल की व्यवहार्यता, संभाव्यता और व्यावहारिकता का मूल्यांकन करेगी, जिससे जल संरक्षण, जलभराव की रोकथाम और जलवायु संतुलन की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें। यह परियोजना अगले दो वर्षों तक चलेगी, और इसके निष्कर्ष शहरी नियोजन तथा जलवायु प्रबंधन की प्रभावी नीतियाँ तैयार करने में सहायक होंगे।

डॉ. सिंह की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर विश्वविद्यालय परिवार एवं शोध जगत में हर्ष और गर्व का वातावरण है। यह शोध न केवल रांची शहर की पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान देगा, बल्कि भारत के अन्य शहरी क्षेत्रों के लिए भी एक अनुकरणीय मॉडल तैयार करेगा।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.