झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी “प्रेमचंद और फकीर मोहन सेनापति का साहित्य: एक पुनर्मूल्यांकन” का समापन एक विचारोत्तेजक और प्रेरणादायक वातावरण में हुआ। इस संगोष्ठी ने हिंदी और क्षेत्रीय साहित्य के मध्य एक सेतु का निर्माण किया, जहाँ विभिन्न विद्वानों ने साहित्यिक संवाद को नए आयाम दिए।
मुख्य अतिथि प्रो. जयंतकर शर्मा (ओडिशा) ने प्रेमचंद और फकीर मोहन सेनापति की साहित्यिक विरासत पर प्रकाश डालते हुए कहा, “प्रेमचंद का नाम हिंदी साहित्य के आकाश में सूर्य की भांति चमकता है, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि क्षेत्रीय साहित्य के रत्न, जैसे फकीर मोहन सेनापति, भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। उनके साहित्य में समाज की धड़कन सुनाई देती है।” उन्होंने हिंदी साहित्य की अनिवार्यता और इसके विस्तार की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. श्रेया भट्टाचार्जी (भाषा संकायाध्यक्ष, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय) ने कहा, “यह विश्वविद्यालय के लिए गौरव का क्षण है कि हम ऐसे साहित्यिक विमर्श का हिस्सा बने। हिंदी साहित्य को और अधिक सशक्त बनाने के लिए हमें इस प्रकार की संगोष्ठियों को और अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।”
सह-अध्यक्ष कुलसचिव के. के. राव ने विद्यार्थियों को साहित्य के प्रति आकर्षित करने के लिए प्रेरणादायक शब्द कहे। उन्होंने कहा, “साहित्य केवल किताबों में सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन का सार है। प्रेमचंद और सेनापति का साहित्य इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे लेखनी समाज का दर्पण बन सकती है।”
डॉ. उपेंद्र कुमार (सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग) ने संगोष्ठी के दौरान प्रस्तुत किए गए महत्वपूर्ण शोधपत्रों और चर्चाओं का सार प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि “इस संगोष्ठी में शोधार्थियों और विद्वानों ने प्रेमचंद और फकीर मोहन सेनापति के साहित्य को नए दृष्टिकोण से देखा, जिससे हमें साहित्य की सामाजिक भूमिका को समझने का अवसर मिला।”
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुदर्शन यादव (सहायक प्राध्यापक, जनसंचार विभाग) ने कुशलतापूर्वक किया, जिससे संगोष्ठी की अंतिम कड़ी भी उतनी ही प्रभावी रही। अंत में, धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रत्नेश विश्वक्सेन (अध्यक्ष, हिंदी विभाग) ने किया। उन्होंने कहा, “इस संगोष्ठी की सफलता में सभी विद्वानों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों और आयोजकों का योगदान अतुलनीय है। यह केवल एक संगोष्ठी नहीं, बल्कि साहित्यिक चेतना का उत्सव था।”
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों को पौधे भेंट कर की गई, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि साहित्य और प्रकृति दोनों जीवन के आधार हैं। इस संगोष्ठी में भारत सहित श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, अमेरिका और जापान के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से प्रख्यात प्रोफेसर, शोधकर्ता एवं विद्वानों ने प्रेमचंद और फकीर मोहन सेनापति के साहित्य की ऐतिहासिक, सामाजिक एवं राजनीतिक प्रासंगिकता पर विचार-विमर्श किया। कार्यकर्म में बड़ी मात्रा में विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया।