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पद्मश्री डा कामिल बुल्के की जयंती मनाई गई

Ranchi:  “मैं हमेशा अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें खरीदती थी लेकिन डा बुल्के के हिंदी और संस्कृत भाषा के प्रति प्रेम देखने केबाद मैं इतनी प्रभावित हुई कि हमने अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें खरीदनी ही छोड़ दिया.” उक्त बातें डा प्रोफेसर मंजु ज्योत्सना ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा। डा मंजू ज्योत्सना ने कहा कि डा कामिल बुल्के बेल्जियम में पैदा जरूर हुये पर उनकी आत्मा सच्चे भारतीय की रही.उनके शिक्षा साहित्य में अप्रतिम योगदान को विश्व हमेशा याद रखेगा।

फादर जेम्स टोप्पो ने कहा कि डा बुल्के ने अपना सारा जीवन हिंदी साहित्य और संस्कृत भाषा के उत्तरोत्तर विकास में लगा दिया था.फा जेम्स टोप्पो ने बताया कि हरी घाटी नामक पुस्तक में डा बुल्के ने बड़ी ही सरल भाषा में आत्मीयता से जीवन से जुड़ी बातों का जिक्र किया है।जो प्रेरणादायक हैं.

संत जेवियर्स कॉलेज के प्राचार्य फादर नोबोर लकड़ा ने भी अपने संबोधन में कहा कि भारत देश के साहित्य और अनुवाद क्षेत्र में डा कामिल बुल्के के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है. फादर नोबोर लकड़ा ने आगे कहा युवाओं को डा कामिल बुल्के की जीवनी का अध्ययन करने की आवश्यकता है।

श्रद्धांजलि कार्यक्रम का संचालन करते हुए जनजातीय परामर्शदातृ परिषद टीएससी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने बताया कि संत मरिया महागिरजाघर स्थित चौराहे पर इसी महीने पद्मश्री डा कामिल बुल्के की प्रतिमा स्थापित की जायेगी. जिसके अनावरण के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अनावरण करने का आग्रह किया जायेगा। रांची नगर निगम को इसकी सूचना पहले ही दी जा चुकी है और निगम ने सहमति जताई है। रतन तिर्की ने कहा कि सड़क का नामकरण पहले से ही डा कामिल बुल्के पथ किया जा चुका है।

सत्य भारती के निदेशक फादर जस्टिन तिर्की,संत जेवियर्स कालेज के पूर्व प्राचार्य फादर निकोलस टेटे,फादर गिलबर्ट डिसूजा,फादर ब्राइस, जनजातीय परामर्शदातृ परिषद टीएससी के पूर्व सदस्य रतन तिर्की एवं माईनर सेमिनरी अपोस्तोलिक स्कूल के ब्रदर्स,काथलिक महिला संध के महिला सदस्य, अधिवक्ता मोनालिसा सोरेंग, आशीष कुजूर एवं अन्य गणमान्य लोगो ने डा कामिल बुल्के को श्रद्धांजलि दी और श्रद्धासुमन अर्पित किया।

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