सिलीगुड़ी : ह्यूमन लाइफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च सेंटर सिलीगुड़ी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में चाय बगान के सैंकड़ों आदिवासियों ने एक स्वर में कहा कि बंगाल सरकार हमें हमारी जमीन पर मालिकाना हक दे। हमारे पुरखों और आदिवासियों ने १५० साल पहले यहां आकर चाय बागान बनाया और सरकार की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन इतने सालों बाद भी हमें जमीन पर मालिकाना हक नहीं दिया गया है। हमारी तीन चार पीढ़ियों ने बंगाल और केंद्र सरकार की अर्थव्यवस्था को बढ़ाया है। इसलिए हमें खतियान दिया जाये और जमाबंदी खोली जाये।
मौके पर झारखंड से सिलीगुड़ी गये नेताद्वय प्रभाकर तिर्की और रतन तिर्की ने अपने अपने संबोधन में कहा कि जमीन का दस्तावेज जरूरी है। उन्होंने कहा कि बंगाल सरकार आदिवासियों के हित में सिर्फ आर्थिक सहायता कर हमारी संस्कृति परंपरा इतिहास भाषा रहन सहन पारंपरिक व्यवस्था को खत्म करना चाहती है। प्रभाकर तिर्की ने कहा कि हमारी आदिवासी पहचान और अधिकारों की व्याख्या संविधान में की गई। जिसकी रक्षा करना हर सरकार का कर्तव्य बनता है। इसलिए चाय बागान के आदिवासियों की जमीनी पहचान को सरकार खतियान देकर बचायें।
रतन तिर्की ने कहा कि हम आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा शुरू से हनन किया जाता रहा है । उन्होंने कहा कि सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी असम भूटान नेपाल के चाय बागानों में लाखों आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है और सरकार मौन है। इसलिए अब पुरे चाय बागानों में रहने वाले आदिवासियों का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार कर सरकार को दिया जाए ताकि जमीन पर खतियानी अधिकार मिल सके।
.
ह्यूमन लाईफ डेवलपमेंट एंड रिसर्च सेंटर सिलीगुड़ी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में सेंटर के पदाधिकारियों ने चाय बागानों में रहने वाले आदिवासियों के परिवारों से संबंधित आंकड़े प्रस्तुत किया। सेंटर के सलाहकार फा पास्कल ने बताया कि आदिवासियों के जीवन स्तर में सुधार तभी हो सकता है जब उन्हें जमीन पर मालिकाना हक मिल जाए।
हॉफमैन ला एसोसिएट रांची की अधिवक्ता सिलवंती कुजूर ने कहा कि कानूनी अधिकार में संवैधानिक अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या की गई। सिलवंती कुजूर ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों को सीएनटी एसपीटी एक्ट के तहत जमीन की सुरक्षा की गारंटी दी गई। इसलिए चाय बागानों के आदिवासियों को भी कानूनी अधिकार मिलनीं चाहिए। उन्होंने कहा कि संघर्ष के साथ साथ खतियान प्राप्त करने हेतु कानून का सहारा लेना होगा।
आगामी २१-२२ जून को पुनः सिलीगुड़ी में खतियान की मांग को लेकर असम जलपाईगुड़ी दार्जिलिंग नेपाल के आदिवासियों के प्रतिनिधि जुटेंगे और संवैधानिक तरीके से सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बनायेंगे।
आज के कार्यक्रम में वर्किंग पीपुल्स एलायंस के प्रभाकर तिर्की, रतन तिर्की, अधिवक्ता मुक्ता मरांडी अधिवक्ता सिलवंती कुजूर अधिवक्ता मोनालिसा लकड़ा और रिसर्च सेंटर के पदाधिकारियों ने भी अपनी अपनी बातें रखीं।