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झारखंड सरकार द्वारा पाँचवीं और आठवीं की परीक्षा को ‘चेक प्वाइंट’ बनाना राज्य में ड्रॉप आउट बढ़ाएगा: भाकपा माले

रांची, 5 अक्टूबर 2025 –राज्य सरकार द्वारा पाँचवीं और आठवीं कक्षा की परीक्षा को ‘चेक प्वाइंट’ बनाने के निर्णय को सही नहीं कहा जा सकता है। यह कदम छात्र-छात्राओं के भविष्य और उनके शिक्षा के अधिकार को कमजोर करेगा। यह बदलाव बच्चों की मानसिकता पर नकारात्मक दबाव बढ़ाएगा। तीन महीने के भीतर दोबारा परीक्षा उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता छोटे बच्चों के स्वाभाविक विकास और रचनात्मकता को बाधित करेगी। यह कदम नई शिक्षा नीति की असलियत उजागर करता है।

परीक्षा में असफल होने पर अगली कक्षा में प्रवेश की अनिश्चितता और पुन: परीक्षा की अनिवार्यता बच्चों को स्कूल से दूर करेगी। यह अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा के अधिकार को कमजोर करेगा। हमारे देश का संविधान और शिक्षा का अधिकार कानून सुनिश्चित करता है कि प्राथमिक और मध्य विद्यालय स्तर पर बच्चे बिना किसी रुकावट के शिक्षा प्राप्त करें। यह ‘चेक प्वाइंट’ व्यवस्था इसी मूल अधिकार को चुनौती देती है।

सुदूर अंचलों तथा सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर तबकों से आने वाले बच्चे पहले ही संसाधनों की कमी और ड्रॉप-आउट के उच्च जोखिम का सामना कर रहे हैं. यह बदलाव उन्हें और ज्यादा प्रभावित करेगा। परीक्षा के इस दबाव और भय से उनके स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि होगी। प्राथमिक शिक्षा में परीक्षा कॉपियों की जाँच दूसरे स्कूलों के शिक्षकों से कराना एक अव्यावहारिक और निरर्थक व्यवस्था है। यह स्कूल विशेष के शिक्षकों को अपने छात्रों के वास्तविक मानसिक और शैक्षणिक विकास के स्तर को समझने, आवश्यक सहायता प्रदान करने और अपनी शिक्षण पद्धति में सुधार करने के लिहाज से रुकावट होगी। यह शिक्षकों की अपनी कक्षाओं के प्रति जवाबदेही को भी कमजोर करता है।

जब विकसित शिक्षा प्रणालियां प्राथमिक शिक्षा में औपचारिक परीक्षा को खत्म कर रचनात्मक खेल, प्रायोगिक शिक्षा (Experiential Learning) और बाल-केंद्रित पद्धति को अपना रही है, तब झारखंड सरकार का यह प्रतिगामी कदम अत्यंत खेदजनक है। दुनिया भर में यह स्थापित हो चुका है कि बचपन में परीक्षा का अनावश्यक दबाव बच्चों की प्रतिभा विकास में बाधक होता है।

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