चुनाव क्या है और राजनीति क्या है कोई हम जैसे लोगो से पूछे जो इसके हुए शिकार हो गये । जब एक नेता गिरफ़्तार होता है तो नारे लगाने शुरू हो जाते है पर जो लोग इन नेताओं के सरकार के कार्यकाल में राजनीति के शिकार होकर गिरफ्तार होते है उसे किसी को ना कोई मतलब होता है ना ही दर्द उठता है।
ज़ाहिर सी बात है एक अधिकारी को अज्ञात( anonymous) होकर काम करना पड़ता है। परंतु फिर भी अधिकारियों को राजनीति और पोलिटिकल पार्टी के प्रिज्म से देखा जाता है। जैसा की UP/छत्तीसगढ़/तमिलनाडु/बिहार और हाल में झारखंड में देखा जाने लगा है। नेताओं के परिवार के पास तो सारी सुविधा लगातार बनी रहती है। कई बार तो पार्टी ही इनका लीगल ज़रूरतों और रोज़मर्रा का ध्यान रखता है। पर अधिकारी और अन्य को इसका दंस झेलना पड़ता है।
अधिकारी का नाम जांच के दौरान ज़िक्र होते ही उसे दोषी करार दिया जाता है। मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है।समाज, अधिकारी वर्ग और मीडिया सभी शक की निगाह से देखना शुरू कर देते है। सब एक दूसरे से केस को लेकर चर्चा करते है और ये उत्सुकता रहती है कब कौन गिरफ्तार हो रहा है।
मेरी आपबीती भी इन सबसे अलग नहीं है। पति के साथ ये इसलिए हुआ क्योंकि वो नोन बीजेपी स्टेट में थे और केन्द्र-राज्य की लड़ाई के शिकार हुए।। लेकिन जब वो गिरफ़्तार हुए तो सिस्टम और सरकार से कोई उम्मीद थी नहीं और हुआ भी वैसा ही। सस्पेंशन आर्डर निकलने में वक्त नहीं लगा पर निलंबन के बाद निर्वहन भत्ता मिलने में जो पापड़ बेलने पड़े वो एक अलग क़िस्सा है । मुख्य सचिव के मदद से निर्वहन भत्ता मिलना शुरू हुआ।समझ में यह नहीं आता की विभाग में इसी सेवा के अधिकारी होने के बावजूद भी कुछ लोगों का नज़रिया बिलकुल बदल जाता है।
मैं राँची शहर में नई थी, ज़्यादा कुछ पता नहीं था । अर्श से फर्श तक का सफ़र कुछ महीनों में ही तय हो गया। बहुत संघर्ष किया, संघर्ष आज भी जारी है और पता नहीं कितने दिन और रहेगा। पर इससे किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि सबकी नज़र मे एक अफ़सर ही ग़लत होता है । सोने पर सुहागा तो तब होता है जब आपका नंबर लोगों को कुछ निकृष्ट मानसिकता वालों द्वारा बाँट दिया जाता है और फिर शुरू होता है एक नया खेल दलालों का। आपके पास फेक कॉल आने शुरू हो जाते है।
मैंने जब मीडिया वालों को निवेदन किया था कि मेरे पति के केस के तथ्य को कवर कीजिए तो जवाब नकारात्मक था। जिस ज़मीन के मामले में उन पर करवाई हुई उसकी रजिस्ट्री पहले भी हो चुकी है।ईडी ने जांच में यह स्पष्ट रूप से बताया है कि रजिस्ट्री करने वाला जयंत कर्णार्ड एक फेक/नकली मालिक है। एक वकील जो की कभी सरकार के लिये AAG रहे थे जाली दस्तावेज बनाने में मदद किए थे। इसने तो उच्च न्यायालय में शपथ पत्र पर झूठी दस्तावेज के आधार पर अपने पक्ष में आर्डर प्राप्त किया। उस समय भी जमीन सेना के कब्जे में थी । फिर कैसे ज़मीन की रजिस्ट्री हुई और उस समय के तमाम जिला के अधिकारी/रजिस्ट्रार आदि से पूछताछ क्यों नहीं हुई।ये सब तथ्य जब मीडिया को बताया गया तो उनका कहना था हम सिर्फ़ बड़ी स्टोरी कवर करते है और इन तथ्यों का इस सरकार के कार्यकाल से कोई नाता नहीं है।
कुछ मीडियाकर्मी के एक आँख में सुरमा और एक आँख में काजल लगा हुआ है। आशा करती हूँ कि कभी तो पूरा सच बाहर आयेगा। शायद उन्हें नहीं पता कि हम जैसे लोग जीतने संघर्ष एवं कष्ट में है और शायद ही कोई हो।पर कुछ लोग सिस्टम के अंदर और बाहर से मुझे बहुत मदद करते रहे है जिनका मैं शुक्रगुजार हूँ।