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सीबीआई या ई.डी  की करवाई में एक अधिकारियों को राजनीतिज्ञों से ज्यादा दंश झेलना पड़ता है: शीतल झा 

रांची के पूर्व उपयुक्त छवि रंजन को प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने सेना की कब्ज़े वाली ज़मीन के अवैध खरीद विक्री के मामले में पिछले साल गिरफ्तार किया।  न्यायलाय ने उनकी जमानत याचिकाएं खारिज की।  इसी बीच प्रवर्तन निदेशालय के अन्य अभियुक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को उच्चतम न्यायलय ने जमानत दिया। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल को राजनीति में प्रवेश का अवसर मिला। दुसरे अभियुक्त हेमंत सोरेन की पत्नी को राजनीति में प्रवेश का अवसर मिला और वह गांडेय विधानसभा से झारखण्ड मुक्ति की उम्मदीवार के रूप में खड़ी है।  इस परिस्थिति में एक  भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पत्नी क्या मनोदशा होगी यह वर्णन कर रही है छवि रंजन की पत्नी शीतल झा।  उनके आलेख को उसी रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।  यह उनके निजी विचार हैं।
सीबीआई या ई.डी  की करवाई में एक अधिकारियों को राजनीतिज्ञों से ज्यादा दंश झेलना पड़ता है 
शीतल झा 

 

चुनाव क्या है और राजनीति क्या है कोई हम जैसे लोगो से पूछे जो  इसके हुए शिकार हो गये । जब एक नेता गिरफ़्तार होता है तो नारे लगाने शुरू हो जाते  है पर जो लोग इन नेताओं के सरकार के कार्यकाल में राजनीति के शिकार होकर गिरफ्तार होते है उसे किसी को ना कोई मतलब होता है ना ही दर्द उठता है।

ज़ाहिर सी बात है एक अधिकारी को अज्ञात( anonymous) होकर काम करना पड़ता है। परंतु फिर भी अधिकारियों को राजनीति और पोलिटिकल पार्टी के प्रिज्म से देखा जाता है। जैसा की UP/छत्तीसगढ़/तमिलनाडु/बिहार और हाल में झारखंड में देखा जाने लगा है। नेताओं के परिवार के पास तो सारी सुविधा लगातार बनी रहती है। कई बार तो पार्टी ही इनका लीगल ज़रूरतों और रोज़मर्रा का ध्यान रखता है। पर अधिकारी और अन्य को इसका दंस झेलना पड़ता है।

मैं हर एक परिवार के बात कर रही हूँ जो राजनीति द्वन्द में ईडी/सीबीआई के  केस में गिरफ़्तार है। उनके परिवार  ख़ासकर पत्नी और बच्चे जो झेल रहे है उसका ज़िक्र तो कहीं नहीं होता। पर राजनेता को लेकर मीडिया से लेकर न्यायालय भी विशेष ध्यान देता है। जो सहानुभूति नेता को मिलते है वो बाक़ी लोगों को नहीं मिल पाती । शायद इसलिये कहा जाता है कि किसी की छप जाती और किसी की छुप जाती है।

अधिकारी का नाम जांच के दौरान ज़िक्र होते ही उसे दोषी करार दिया जाता है। मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है।समाज, अधिकारी वर्ग और मीडिया सभी शक की निगाह से देखना शुरू कर देते है। सब एक दूसरे से केस को लेकर चर्चा करते है और ये उत्सुकता रहती है कब कौन गिरफ्तार हो रहा है।

मेरी आपबीती भी इन सबसे अलग नहीं है। पति के साथ ये इसलिए हुआ क्योंकि वो नोन बीजेपी स्टेट में थे और केन्द्र-राज्य की लड़ाई के शिकार हुए।। लेकिन जब वो गिरफ़्तार हुए तो सिस्टम और सरकार से कोई उम्मीद थी नहीं और हुआ भी वैसा ही। सस्पेंशन आर्डर निकलने में वक्त नहीं लगा पर निलंबन के बाद निर्वहन भत्ता मिलने में जो पापड़ बेलने पड़े वो एक अलग क़िस्सा है । मुख्य सचिव के मदद से निर्वहन भत्ता मिलना शुरू हुआ।समझ में यह नहीं आता की विभाग में इसी सेवा के अधिकारी होने के बावजूद भी कुछ लोगों का नज़रिया बिलकुल बदल जाता है।

जब वो गिरफ़्तार हुए और मैं ईडी कार्यालय गई तो वहाँ पत्रकारों के भेष में कुछ लोग हूटिंग भी किए। क्या कुछ नहीं कहा गया उस भीड़ के द्वारा।समझ में यह नहीं आता कि इसमें मेरी क्या गलते थी ? बाद में एक दैनिक अखबार ने इसकी निंदा भी की और उनमें से कुछ टुच्चे पत्रकार को हटाया भी गया। अब आप कहेंगे जिन्होंने hooting की उसको सजा मिल गई पर मैंने जो उस पल दर्द सहा उसको कैसे भुला जा सकता है।

 

मैं राँची शहर में नई थी, ज़्यादा कुछ पता नहीं था । अर्श से फर्श तक का सफ़र कुछ महीनों में ही तय हो गया। बहुत संघर्ष किया, संघर्ष आज भी जारी है और पता नहीं कितने दिन और रहेगा। पर इससे किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि सबकी नज़र मे एक अफ़सर ही ग़लत होता है । सोने पर सुहागा तो तब होता है जब आपका नंबर लोगों को कुछ निकृष्ट मानसिकता वालों द्वारा बाँट दिया  जाता है और फिर शुरू होता है एक नया खेल दलालों का। आपके पास फेक कॉल आने शुरू हो जाते है।

 

जब आप इन कठिन समय से गुजर रहे होते है तब इन सब के द्वारा अपना उल्लू सीधा करने के मकसद से आपकी भावनाओं से खेला जाता है। समझ में नहीं आता है कि ये किस मिट्टी से बने है।मैं तो फिर भी पढ़े लिखे हूँ क़ानून थोड़ा मोड़ा समझती हूँ अपनी बातें रख पाती हूँ , पर उनका सोचिए जिनको कुछ नहीं पत्ता उनपर क्या बीतती होगी । कई के परिवार के सदस्य से कोर्ट में मुलाक़ात हो जाती जिन्हें पीएमएलए का कुछ समझ नहीं।

 

मैंने जब मीडिया वालों को निवेदन किया था कि मेरे पति के केस के तथ्य को कवर कीजिए तो जवाब नकारात्मक था। जिस ज़मीन के मामले में उन पर करवाई हुई उसकी रजिस्ट्री पहले भी हो चुकी है।ईडी ने जांच में यह स्पष्ट रूप से बताया है कि रजिस्ट्री करने वाला जयंत कर्णार्ड एक फेक/नकली मालिक है। एक वकील जो की कभी सरकार के लिये AAG रहे थे जाली दस्तावेज बनाने में मदद किए थे। इसने तो उच्च न्यायालय में शपथ पत्र पर झूठी दस्तावेज के आधार पर अपने पक्ष में आर्डर प्राप्त किया। उस समय भी जमीन सेना के कब्जे में थी । फिर कैसे ज़मीन की रजिस्ट्री हुई और उस समय के तमाम जिला के अधिकारी/रजिस्ट्रार आदि से पूछताछ क्यों नहीं हुई।ये सब तथ्य जब मीडिया को बताया गया तो उनका कहना था हम सिर्फ़ बड़ी स्टोरी कवर करते है और इन तथ्यों का इस सरकार के कार्यकाल से कोई नाता नहीं है।

 

कुछ मीडियाकर्मी के एक आँख में सुरमा और एक आँख में काजल लगा हुआ है। आशा करती हूँ कि कभी तो पूरा सच बाहर आयेगा। शायद उन्हें नहीं पता कि हम जैसे लोग जीतने संघर्ष एवं कष्ट में है और शायद ही कोई हो।पर कुछ लोग सिस्टम के अंदर और बाहर से मुझे बहुत मदद करते रहे है जिनका मैं शुक्रगुजार हूँ।

अंत में यही निवेदन है के मेरे लिये प्रार्थना करिए के मेरा बिखरा हुआ परिवार फिर से एक हो जाये।
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