NEWS7AIR

भारतीय डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक डॉक्टर लालजी सिंह

प्रख्यात डीएनए वैज्ञानिक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. लालजी सिंह का जन्म 5 जुलाई 1947 को जौनपुर जिले के कलवारी गांव में हुआ था। ग्रामीण परिवेश से निकले इस मेधा ने न सिर्फ कर देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

जौनपुर की माटी के लाल प्रख्यात डीएनए वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, उनकी जीवनी युवाओं की रोल मॉडल है। उन्हें भारत में डीएनए फिंगर प्रिटिंग का पिता माना जाता है। फोंरेसिक साइंस के लिए ये बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। उनका जीवन सतत विकास यात्रा का ऐसा दर्पण है, जो समय-समय पर लोगों की प्रेरणा का स्रोत बना है। ग्रामीण परिवेश से निकले इस मेधा ने न सिर्फ कर देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

जौनपुर के सिकरारा विकास क्षेत्र के कलवारी गांव में 5 जुलाई 1947 को सूर्य नारायण सिंह के घर डॉ .लालजी सिंह का जन्म हुआ था। तीन भाइयों में वे सबसे बड़े थे। सूर्य नारायण 1952 से लगातार 2003 तक गांव के प्रधान रहे। डा. लालजी प्राथमिक स्तर से प्रखर रहे। प्राथमिक से इंटर तक की पढ़ाई इंटर कालेज प्रतापगंज से करने के बाद बीएचयू में प्रवेश लिया।

1964 में बीएससी व 1966 में एमएससी में गोल्ड मेडलिस्ट बने । 1971 में यहीं से सांप के डीएनए पर शोध प्रबंध पूरा किया। अपने गुरु प्रो. रॉय चौधरी के सानिध्य में कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी (यूके) में 12 वर्ष तक पोस्ट डाक्टरोल रिसर्च फेलो व रिसर्च एसोसिएट पद पर रहते हुए कई शोध किए। आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कैनबरा में जुलाई 1979 से तीन माह तक विजटिंग फेलो भी रहे।

विदेश में उन्हें आकर्षक वेतन व बड़े पदों पर चयन का ऑफर मिलता रहा, लेकिन देश प्रेम के जोर से जून 1987 में स्वदेश लौट आए और हैदराबाद स्थित सीसीएमबी में बतौर वैज्ञानिक जुड़े। यहां 1995 से 99 तक विशेष कार्यधिकारी का प्रशासनिक दायित्व संभाला और यहां के निदेशक भी रहे। इस बीच उनके 50 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हुए।

अमेरिका की मशहूर पत्रिका नेचर ने 2009 में उनका शोध पत्र प्रकाशित किया तो पूरा विश्व ने उनकी मेधा का लोहा माना। भारत में उनके द्वारा विकसित डीएनए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक ने तहलका मचा दिया। उनकी उपलब्धियों में जंगली जीव के संरक्षण के क्षेत्र में तथा स्पेसीज आइडेंटिफिकेशन फॉर फोरेंसिक एप्लीकेशंस, डीएनए आधारित मॉलिक्युलर डायग्नस्टिक्स, जेनेटिक एफेनिटीज ऑफ अंडमान आइस्लाइन्डर्स तथा जीनोम फाउंडेशन प्रमुख हैं।

बीएचयू से शिक्षा ग्रहण कर उन्होंने उसी विश्वविद्यालय के कुलपति पद को गौरान्वित किया। अगस्त 2011में कुलपति नियुक्त हुए और महज एक रुपये वेतन पर 2014 तक कार्य किया। यह भी एक अजीब संयोग रहा कि 10 दिसम्बर 2017 को घर से हैदराबाद जाते समय बाबतपुर एयरपोर्ट पर उनको दिल का दौरा पड़ा। उन्हें सर सुन्दर लाल अस्पताल बीएचयू लाया गया। पूरे विश्व में जौनपुर और बीएचयू का लोहा मनवाले वाले डा. लालजी ने यहीं पर अंतिम सांस ली।

*500 से ज्यादा मामलों में मिला न्याय*

डीएनए वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह के व्याख्यानों ने डीएनए फिंगर प्रिंटिंग को विधिक वैधता दिलवाकर 500 से अधिक प्रकरणों को सफलता पूर्वक सुलझाया है। इस तकनीक से राजीव गांधी हत्याकांड, मेरी बनाम लक्ष्मी कांड, मद्रास उच्च न्यायालय का गुम शुदा बच्चों का मामला, टेलीचेरी, केरल का पितृत्व विवाद, नैना साहनी तंदूर हत्या कांड, बेअंत सिंह हत्या कांड, प्रियदर्शनी मट्टू हत्याकांड स्वामी श्रद्धानन्द प्रकरण में फैसला मिल सका।

*पैतृक गांव में जीनोम फाउंडेशन प्रयोगशाला की स्थापना -*

डीएनए वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह ने अपने पैतृक गांव कलवारी में जीनोम फाउंडेशन प्रयोगशाला की स्थापना किया। साथ ही उसी कैंपस में राहुल पीजी कालेज भी स्थापित किया ,जहां साइन्स व आर्ट ग्रुप की पढ़ाई होती है। उनको 85 अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान दिए गए हैं,जिसमें 2004 में पद्मश्री, 2009 में सीएसआईआर फेलोशिप ,2010 में बीपी पाल मेमोरियल अवार्ड, 2011 में मेरोटोरियस इवेंशन अवार्ड आदि प्रमुख पुरस्कार हैं।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.