Ranchi: झारखंड सरकार के कैबिनेट में पास हुए डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची के नाम परिवर्तन किया जाना झारखंड सरकार के बंगभाषी के प्रति दोहरे चरित्र को दर्शाता है.
छात्र नेता, अभाविप झारखंड के पूर्व प्रदेश मीडिया संयोजक दुर्गेश यादव ने कहा कि हम सभी झारखंडवासी समस्त झारखंड के स्वतंत्रता सैनानी एवं झारखंड आंदोलनकारी का सम्मान करते हैं , हम चाहते है सभी हुतात्माओं को सम्मान मिले, लेकिन किसी के सम्मान का हनन करके किसी को सम्मान देना उचित नहीं होगा, झारखंड सरकार के कैबिनेट के निर्णय से लाखों बंगभाषी खुद को अकेला महसूस कर रहे है।
स्वाधीनता के आंदोलन हो या झारखंड आंदोलन या झारखंड विभाजन आंदोलन सभी आंदोलन में बंगभाषियों ने बढ़- चढ़ कर भाग लिया था, अपितु आज भी झारखंड के विकास में बांग्ला भाषियों का काफी योगदान है। समरस समाज बनाने के बजाये लेकिन हेमंत सरकार पहले बांग्लाभाषियों को अपने मातृभाषा की पढ़ाई से वंचित किया,अब बांग्लाभाषियों का नाम निशान यदि थोड़े बहुत किसी जगह पर है, उसकी स्मृति शेष व्यक्तित्व को खत्म करने का निर्णय सोचनीय है, बता दें कि उक्त शैक्षणिक संस्थान पहले रांची कॉलेज था, जिसे तत्कालीन भाजपा सरकार ने वर्ष 2017 में नाम बदलकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विवि किया था। तत्कालीन राज्यपाल सह कुलाधिपति रही द्रौपदी मुर्मू ने राज्य सरकार के इस प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति दी थी।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। संसद में अपने भाषण में उन्होंनें धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू कश्मीर की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि ”या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूंगा”। डॉ. मुखर्जी अपने संकल्प को पूरा करने के लिये 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। जेल में उनकी मृत्यु ने देश को हिलाकर रख दिया था और परमिट सिस्टम समाप्त हो गया। उन्होंने कश्मीर को लेकर एक नारा दिया था,“नहीं चलेगा एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान”, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे। एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करता है.