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अधर्म के माथे पर नाचता धर्म

शत्रु के घर में घुसकर उसके दांत तोड़ देना हमारी धार्मिक परंपरा रही है… तो क्या सचमुच गेंद यूँ ही यमुना में चली गयी थी?
नहीं भाई! गेंद जानबूझ कर यमुना में फेंकी गयी थी। वह यमुना जो युग युगांतर से अपने तट पर बसे लोगों की माई थी, यमुना मइया… जिसका अमृत जल पी कर मानवों की असँख्य पीढ़ियों ने अपना जीवन पूर्ण किया था। और उसी यमुना में अब विष बह रहा था…

वो जिसने गेंद फेंकी थी न, वह आने वाले युग को यही बताने आया था कि “विषधर के काटने की प्रतीक्षा मत करना!
वह यदि आसपास दिख जाय तो ही उसकी दांत तोड़ दो। शत्रु के शक्तिशाली होने की प्रतीक्षा मत करो! अनावश्यक ही फेंको उसके घर में गेंद, और आगे बढ़ कर तोड़ दो उसके विषैले दांत!”

पर इस देश के लड़के अपने पुरुखों की कही बात मानते कब हैं भाई…

हाँ तो गेंद यमुना में गयी। नारायण मुड़े शेषनाग की ओर! इस बार भइया बन कर आये शेषनाग ने कहा, “अधिक नाटक न करो! जाओ तोड़ कर आओ विषधर के दांत! हम इधर का संभालते हैं।”

कृष्ण कूदे यमुना में और बलराम भागे गाँव में। चिल्लाए, “मइया… बाबा… काका… दौड़ो सब के सब, कान्हा जमुना में कूद गया…”
क्यों चिल्लाए? क्या भय से? हट! उसे भय से क्या भय? वे चिल्लाए कि आओ सब, देख लो! मेरा कन्हैया कैसे भय की छाती पर चढ़ कर नाचता है। सीख लो कि शत्रु की नाक में नकेल डालना आवश्यक हो जाय, तो अपना गेंद फेक कर भी विवाद लिया जाना चाहिये। और जान लो, कि शत्रु के घर में घुस कर उसके दांत तोड़ देना अब से तुम्हारी धार्मिक परम्परा है।

इधर हाहाकार करते ग्वाले जुटे नदी तट पर, और उधर कान्हा ने धर दबोचा कालिया को! जब उसकी गर्दन मरोड़ दी तो वह गिड़गिड़ाया- “हमने तुम्हारा तो कुछ न बिगाड़ा नाथ! फिर क्यों मार रहे हो?”

कृष्ण खिलखिलाए। कहा, “जो अपने ऊपर अत्याचार होने पर प्रतिरोध करे वह घरबारी होता है, जो कहीं भी अपराध होता देख कर प्रतिरोध करे, वह अवतारी होता है। अभी तो प्रारम्भ है बाबू! स्वयं तक पहुँचने से पूर्व ही संसार के एक एक अपराधी को ढूंढ कर दण्ड देने आया हूँ मैं, और शुरुआत तुमसे होगी।”

उसका गला उनके हाथ में था, वह रोने-गिड़गिड़ाने लगा। उसकी पत्नियां कान्हा के पैर पकड़ने लगीं, छाती पीटने लगीं। आप देखियेगा, अपराधियों का परिवार छाती पीटने में दक्ष होता है। वह भी सौगंध खाने लगा, “चला जाऊंगा, फिर कभी इधर लौट कर नहीं आऊंगा, भारत की ओर मुड़ कर नहीं देखूंगा…”

पर वो कन्हैया थे। छोड़ना तो सीखा ही नहीं था उन्होंने। कहा, “प्राण छोड़ देते हैं, पर तेरे भय को समाप्त करना ही होगा। तेरी ख्याति का वध तो अवश्य होगा।एक बार तेरे भय का मर्दन हो जाय, फिर तू पुनः आ भी जाय तो किसी को भय न होगा। कोई न कोई चीर ही देगा तेरा मुख। जल के ऊपर आ, आज तेरे सर पर ही होगा नृत्य! हमें गढ़ना है वह राष्ट्र, जहां अधर्म के सर पर चढ़ कर धर्म नाचे। निकल तो लल्ला…”

और फिर संसार ने देखा कालिया नाग के फन पर नाचते कृष्ण को! अधर्म के माथे पर नाचते धर्म को। मुस्कुरा उठे नन्द बाबा ने कहा, “युग बदल गया। अब से यह कृष्ण का युग है।

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