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दण्ड एक अप्रिय शब्द है, परन्तु दण्ड-व्यवस्था अवांछनीय नहीं 

अंजू श्री

 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह समाज में रहता है और समाज के नियमों का पालन करने की प्रत्येक मनुष्य से अपेक्षा की जाती है। दण्ड एक अप्रिय शब्द है, परन्तु दण्ड-व्यवस्था अवांछनीय नहीं है। इसका अस्तित्व समाज के लिए हितकर है। दण्ड-व्यवस्था शान्ति और सुरक्षा के लिए आवश्यक है। किसी देश के नागरिक शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके, भय के बिना अपने कार्यों का सम्पादन कर सके और अपने अधिकारों का स्वतंत्रता पूर्वक प्रयोग कर सके, इसके लिए राज्य कानूनों का निर्माण करता है।

 

यदि कोई व्यक्ति कानूनों का उल्लंघन करता है तो वह अपने राज्य की शांति और सुरक्षा को संकटग्रस्त बनाता है, जिसके कारण किसी प्रकार की वैयक्तिक तथा सामाजिक उन्नति सम्भव नहीं होती। अतः शान्ति और सुरक्षा की रक्षा के लिए राज्य दण्ड की व्यवस्था करता है। दण्ड-व्यवस्था का उद्देश्य केवल अपराधी को दण्ड देकर उसे हानि पहुँचाना ही नहीं होता, वरन उसे सुधारना और उसे तथा अन्य व्यक्तियों को चेतावनी देकर अपराध की प्रवृत्ति को नियंत्रित करना और यथासंभव दूर करना होता है।

 

 

जिस प्रकार एक परिवार में पिता अपने बच्चे को इसलिए दण्ड देता है कि वह अपराधी प्रवृत्ति को त्याग दे और उसके अन्य बच्चे इस प्रकार अपराध करने का साहस न करें, उसी प्रकार राज्य भी अपराधी प्रवृत्ति वाले नागरिकों को दण्ड इसलिए देता हैं कि वे अपराध का त्याग करें और उन्हें दंडित देखकर राज्य का अन्य नागरिक अपराध करने का साहस न करें। अतः दण्ड संबंधी सिद्धांतों का उद्देश्य अपराधी एवं अन्य व्यक्तियों को सुधार कर उन्हें आदर्श नागरिक बनाना एवं समाज को सुधारना है।

 

 

(लेखिका फिलॉसफी विभाग रांची विश्वविद्यालय के द्वारा PhD की उपाधि से सम्मानित है।  इनके  शोध का विषय था ‘नीति शास्त्र में दंड संबंधी सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन’  इन्होंने अपना शोध डॉ अजय सिंह के मार्गदर्शन में पूरा किया है।)
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