आज हम बात करते है कैदी के बारे में। क़ैदी दो तरह के होते है एक वो जो अपने सोच के कैदी होते है और दूसरा जो जेल में बंद कैदी होते है। आज जेल में बंद कैदी के बारे में बात करते है एक कॉमन सोच है कि ‘कुछ गलती किया है तभी ना जेल में है नहीं तो वो जेल क्यों जाता’ . सोच बिलकुल सही है ये पर क्या किसी ने ये जाने के कोशिश नहीं की के उसका कसूर क्या है। उसके केस में वो दोषी है या सिर्फ़ शक के आधार पर वो जेल में है केस का ट्रायल शुरू भी हुआ है या नहीं ?
उस इंसान के बारे में सोचिए जिस पर ये बीती होगा उसको लगता होगा के में यहाँ आया क्यों में क्या किया था ? क्या मेरा परिवार साथ देगा ? क्या वो समझ पायेंगे के मैंने कुछ नहीं किया ? मैं कभी निकल भी पाऊँगा या नहीं ?
अब इसके दूसरे पहलू पर चले तो आता है उसका परिवार जो इससे ज्यादा परेशानी से गुजरता है। कोर्ट तो बाद में दोषी /निर्दोष साबित करेगा ये पहले ही दोषी साबित कर देते है इनको नीच नज़रों से देखने लगते है परिवार तो फिर भी झेल लेता है पर बच्चे उनकी मनोदशा कोई नहीं समझता जिन मासूम को ये तक नहीं पता होगा के हुआ क्या था उन्हें ताने दिए जाते है उनका क्या दोष ? अगर वो व्यक्ति गिरफ्तार हो गया और उसके केस का ट्रायल शुरू नहीं हुआ लंबे समय तक इस समय के लिए तो वो दोषी हो जाता सबकी नजरों में अगर ट्रायल में वो निर्दोष साबित हो जाता है और बाहर आ जाता है तो इसका दोषी कौन ? बाहर आने के बाद जब कोर्ट भी उसको निर्दोष घोषित कर चुका है वो सामान्य जीवन क्यों नहीं व्यतीत कर पाता ?
कुछ केस में लोगों को फंसा दिया जाता है लंबे समय तक जेल में रहने के बाद उनको बाइज्जत बरी कर दिया जाता है पर उनका जो समय वहाँ गया उसका क्या ? उसकी भरपाई कौन करेगा ? कुछ केस में ऐसा हुआ है मुंबई साईं बाबा केस व्यक्ति 90% Disable और व्हीलचेयर पर थे उन्हें 2014 में गिरफ्तार किया गया माओवादी के साथ संबंध के आधार पर 10 साल के सजा काटने के बाद 5 मार्च २०२४ को बाइज्जत बरी कर दिया गया पर जो दस साल उन्होंने झेला उसकी भरपाई कौन करेगा ?
यही हुआ सूरज कुमार सोनी के साथ 19 महीने जेल में रहने के बाद उसको भी बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। उसके गलती थी उसका नाम का सूरज होना। सूरज एक बहुत गरीब परिवार से था। उसके पिता का देहांत काफ़ी पहले हो गया था। माँ लोगो के घर में काम कर के घर चला रहे थे। , पिस्का मोड़ से राँची कोर्ट लगभग 16 किलोमीटर वो पैदल चल कर आती थी। 19 महीने के बाद कोर्ट ने ये पाया के जिस मर्डर केस में जिस सूरज कुमार सोनी को गिरफ़्तार किया गया है वो सूरज मुज़रिम नहीं। मुज़रिम कोई और दूसरा सूरज है। सिर्फ नाम की समानता के कारण गलती से गिरफ्तार कर लिया गया। अब आप खुद सोचिए के उस माँ और उसके बच्चे ने 19 महीने जो झेला उसमे उनकी क्या गलती थे ? आखिरकार दोषी किसे माने हम ?
एक बलात्कार और हत्या के मामले में तीन लड़कों को सजा हुए । जबकि लड़की जीवित थी , बुंडू राँची से एक जली हुए लाश मिले जो के २२ साल के विवाहित महिला की थी । पर पुलिस ने उसे १७ साल के लड़की के लाश बना दिया जो चुटिया से लापता हुए थे । वो तीनों लड़के बोलते रहे की हमने कुछ नहीं किया पर किसी ने उन पर विश्वास नहीं किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया । बाद में लड़की ख़ुद आये तब उन लड़कों को छोड़ा गया । उन पुलिसवालों पर कार्यवाही नहीं हुए । पर उन लड़कों ने जो उस समय झेला उसका क्या ?
क्या किया जाये ? इस सिस्टम को कैसे बदला जाये ? ग़लत हर कोई नहीं होता पर कहावत है गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है !